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मिज़ो के राम : मिजोरम

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मेरे मन में राम कथा और रामायण के विस्तार को जानने की जिज्ञाषा हुई. दृष्टिगोचर होता है कि राम कथा का विस्तार और रामायण का सामाजिक प्रभाव समस्त विश्व में है.राम एक ही हैं लेकिन सैकड़ों रामायण और हजारों कहानियों में उनके रंग-रूप और वेश-भूषा अलग-अलग है.भारत ही नहीं वरन इंडोनेशिया जैसे गैर हिंदू देशों में भी राम और रामायण के प्रभाव को आज भी देखा जा सकता है.शायद यही कारण है कि यूनेस्को ने अपने एक सुझाव में बताया है कि रामायण एशिया और उसके अन्य निकटवर्ती देशों के लिए सामाजिक एकीकरण में सहयोगी हो सकता है.
सहज रूप से संपूर्ण भारत में रामायण और उसके पात्रों से परिचय बच्चों को स्कूल जाने से पूर्व ही परिवार व समाज में लोककथा, चलचित्र या रामलीला के माध्यम से मिल जाता है. जिसमे भाषाई विविधता तों होती है किन्तु भाव की रागात्मकता सर्वत्र एक ही मिलती है.राजस्थान की सीता चुनरी पहनती है, तों असम के कार्बी जनजाति के प्रसिद्द कार्बी रामायण की सीता जनजातिय वस्त्र पहनकर ही राम के साथ है. दोनों ही जगह सीता, राम की धर्मपत्नी है और वनवास में उनके साथ है.वास्तव में रामायण भारत के एकता को भी दर्शाता है.जहाँ विविधता एकता के लिए वरदान है खतरा नहीं. सबके नजर में राम के वस्त्र अलग-अलग है, राम के धनुष का प्रकार दूसरा हो सकता है उनका खान-पान और निवास में स्थानीय स्वरुप और स्वाद मिलता है परन्तु राम ही अयोध्या के राजा हैं, राम की ही पत्नी सीता हैं, राम ही रावन का वध करते हैं, इन सब कथाओं में ये बातें समान है कोई फर्क नहीं है. राम सभी कथाओं में न्याय,सत्य और धर्मं के रक्षक ही हैं. राम जननायक है.
मिज़ोरम पूर्वोत्तर भारत का एक सुन्दर प्रदेश है.भारत के शेष भाग से लंबे समय तक सामाजिक रूप से कटे रहने के कारण मिशनरियों ने इसे एकांत पाकर मूल भारतीय वनवासी बंधुओं को प्रलोभन और दिग्भ्रमित करके धर्मान्तरित करने का कार्य वर्षों तक किया. परिणाम स्वरुप आज मिज़ोरम सहित पूर्वोत्तर के नागालैंड,मेघालय और अरुणाचल प्रदेश ईसाई बहुल राज्य है.मिशनरियों की योजना तों सबकुछ बदल देने की थी लेकिन भारतीय संस्कृति की मजबूत जरें उनसे हिल नहीं पाई. शायद यही कारण है कि भारत के सर्वाधिक गैर हिंदू प्रदेशों में भी पूजा पद्धति से भले ही राम को निकलवा दिया गया हो किन्तु जनमानश से राम विस्मृत नहीं हुए है.पूर्वोत्तर के विभिन्न जनजातियों के अपने रामायण है और उसका लोक कथाओ, गीतों और नृत्यों के माध्यम से संचार होता रहता है.
मिज़ोरम दो शब्दों के मेल से बना हुआ प्रतीत होता है मिज़ो और राम.वास्तव में मिज़ो, मिज़ोरम की सबसे प्रमुख जनजाति है जिनकी बोली भी मिज़ो ही है.दुर्भाग्य से उनकी मूल लिपि अब विलुप्त हो चुकी है अब अंग्रेजी ही व्यव्हार में है.इस सबके बावजूद आज भी बूढी महिलाएं बच्चों को राम-खेना की कहानियां सुनती है.राम वही है खेना लखन का अपभ्रंश है. मिज़ो रामायण आज लोक कथाओं में ही बचा है.तुलसी के राम से कही भिन्न यहाँ राम वनवास के समय नदियों में मछलियाँ पकरते हैं खेना उनका सहयोग करता है और सीता आग सुलगाकर उन मछलियों को भूनती है, सीता पतिव्रता है इसीलिए पहले वो राम को परोसती है, लखन से मातृवत व्यव्हार है अतः उसके रूचि और स्वाभाव का भी सीता को ध्यान है.बाल्मीकि और तुलसी रामायण के कई पात्र वही है लेकिन समय और लोक व्यव्हार के मुताविक कई पत्रों को कथा में स्थान नहीं है.परन्तु यहाँ भी राम अधर्म पर धर्म द्वारा विजय पाने के लिए ही अवतरित हुए है.खेना इस कथा में भी उग्र स्वाभाव वाला है. रावन का अंत कथा का सबसे रोचक अंग है.राम के आने का उद्येश्य राम राज्य की स्थापना ही है.राम, राम ही हैं ……राम एक ही है…..राम सत्य है. वो दिल्ली के रामलीला में हों, रामानंद सागर के चलचित्र में हों, असम के नृत्य में हों या मिज़ो के लोक कथाओं में….राम संपूर्ण विश्व में आदर्श है.

राजीव पाठक

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